Friday, May 30, 2014

मोड़ तो आए बहुत

मोड़ तो आए बहुत
हर मोड़ पर मुड़ कर देखा
रास्ता बढ़ता ही जाता था
तेरा इंतज़ार
हर पल
करता ही जाता था

फिर चलते-चलते इक रोज़
थक गया मंज़िल की तलाश में
वहीं इक मोड़ पर तुम आए
कहा तुमने कि दे दूँ साथ अगले मोड़ तक
मैंने उठ कर देखा
अब रास्ते नहीं थे
न कोई मोड़ नज़र आया
न जाने कैसे
जो अब तक मोड़ था
इक राह का बस
तुम्हारे आ जाने से
मंज़िल बन गया।

माली या जादूगर

कल तक जो था मुरझाया सा
वो पौधा कैसे खिल उठा?
ये मरियल सा दिखता पौधा
इकदम से कैसे जी उठा?

कल तक तो न कोई कोंपल थी
न कलियों की उम्मीदें ही
इकदम से कैसे उपवन ये
फूलों का गुच्छा बन बैठा?

तुम आए थे तब सूखा था
सब थका-थका, सब रूखा था
ये सब फिर कैसे बदल गया?
हर तिनका कैसे जी उठा?

तुम कौन हो माली बतलाओ
माली हो या हो जादूगर?
बस इक तेरे आ जाने से 
आँगन-उपवन सब खिल उठा?

चाहे जो भी हो ये जादू
इसको तुम रोक न देना अब
मैं भी खिल जाऊँ फूलों-सा
जैसे सब कुछ है खिल उठा।