Sunday, June 22, 2014

ख़ालीपन


लबों पर मुस्कान, आँखों में गीलापन है
सीने में जलन, पर दिल में एक अपनापन है।
ये कैसी याद है तेरी, मेरे साथी?
कि बाहर भीड़, पर अन्दर ख़ालीपन है।

जानता हूँ कि परे हो मेरे छुअन से
दिखते हो पास पर हो दूर कितने मन से
एहसास तो है होने का हम दोनों को एक दूजे का
पर दोनों के मन में एक सूनापन है
ये कैसी याद है तेरी, मेरे साथी?
कि बाहर भीड़ पर अन्दर ख़ालीपन है।

जी चाहता है लपक कर ले लूँ बाहों में तुम्हें
चुरा लूँ जग से और उड़ जाऊँ लेकर तुम्हें
पर कुछ तो है जो रोक रहा है हम दोनों को
वरना दिल में तो दोनों के बेहिसाब पागलपन है।
ये कैसी याद है तेरी, मेरे साथी?
कि बाहर भीड़ पर अन्दर ख़ालीपन है।

उलझे हो तुम भी दुनिया के झमेलों में
खोया हूँ मैं भी बेकार की बातों और मसलों में
न तुम ही निकलते हो इस उलझन से न मुझे ही राह दिखाते हो
ये कैसी बेचैनी, ये कैसा सूखापन है?
ये कैसी याद है तेरी, मेरे साथी?
कि बाहर भीड़, पर अन्दर ख़ालीपन है।

लबों पर मुस्कान, आँखों में गीलापन है
सीने में जलन, पर दिल में एक अपनापन है।
ये कैसी याद है तेरी, मेरे साथी?
कि बाहर भीड़, पर अन्दर ख़ालीपन है।