Friday, July 25, 2014

जो चाहा तुम्हें

जो चाहा तुम्हें तो क्या कसूर मेरा
मैं क्या जानता था कि पत्थर हो तुम
मैंने तो सब कुछ लुटा डाला तुम पर
क्या करूँ जो बेपरवाह हो तुम

न माँगा तुमसे कभी कुछ
न अब कुछ चाहता हूँ
सुकूँ से जान दे पाऊँ
यही बस माँगता हूँ

न दे पाओ ये भी
तो बस एहसान करना
मेरी मय्यत में तुम
इनकार करना

कि मैं तेरा ही कोई  
इक सगा था
यूँ मुँह फेर लेना लाश से  मेरी तुम कि
लगे कोई यूँ ही
बेआसरा था

जो चाहा तुम्हें तो क्या कसूर मेरा
मैं क्या जानता था कि पत्थर हो तुम
मैंने तो सब कुछ लुटा डाला तुम पर
क्या करूँ जो बेपरवाह हो तुम