सोता क्यों है?
तकिये से जब मिलता मस्तक
बिस्तर पर मैं लेटा रहता
चौदह सोलह घन्टे तक जब
मिलता है आराम मुझे, पर
जग न जाने रोता क्यों है ?
बेमतलब सब पूछा करते
तू भई, इतना सोता क्यों है?
क्या बतालाऊं नादानों को
पागल हैं! जो लगे हुए हैं
असली सुख तो सोने में है,
ज्ञानी हैं जो पड़े हुए हैं
जो हैं मुझसे पूछा करते
तू भई, इतना सोता क्यों है?
मैं बस बोलूँ, ''सो जा मूरख
सुख तू ऐसे खोता क्यों है?''
खोवत है जो सोवत ना है
पागल है जो जागत है
सब दुखों की जड़ है इच्छा
कहता यही तथागत है
पड़ा रहे जो मानव हरदम
दुख उसको ना होता क्यों है?
मूरख जग ये क्यों ना सोता
बेमतलब जग रोता क्यों है?
जीवन का मकसद है क्या?
क्या निर्मल आनन्द नहीं?
फिर क्यों थकता मरता है तू
क्या बुद्धि तेरी मन्द कहीं?
अब न सता खुद को इतना तू
दुख के बीज यूं बोता क्यों है?
आ जा, बिस्तर पर गिर देख
सुख इसमें इतना होता क्यों है?
जीवन का मकसद है क्या?
क्या निर्मल आनन्द नहीं?
फिर क्यों थकता मरता है तू
क्या बुद्धि तेरी मन्द कहीं?
अब न सता खुद को इतना तू
दुख के बीज यूं बोता क्यों है?
आ जा, बिस्तर पर गिर देख
सुख इसमें इतना होता क्यों है?
चिन्ता - चिन्तन छोड़ दे प्यारे
आ जा नींद की बाहों में
पाने दे सुकून ज़हन को
खो जा सपनीली राहों में
मत भरमा तू अपने मन को
चिन्तित इतना होता क्यों है?
लगा खराटे जम के भाई
समझ कि ज्ञानी सोता क्यों है?