न मैं छोटा बच्चा हूँ
न कोई अकल का कच्चा हूँ
पर फिर भी चोट लगे मुझको तो
माँ अब भी रो ही देती है।
बरसों से बाहर हूँ घर से
छुट्टी ले आता हूँ घर पे
कितनी बार हो चुका विदा पर
माँ अब भी रो ही देती है।
अब न मैं दु:ख बतलाता हूँ
न मैं दिल के हाल बताता
रहता हूँ खामोश मगर क्यूँ
माँ अब भी रो ही देती है।
गोद में सर अब भी रख लूँ
तो माँ का मुख खिल उठता है
चेहरे पर होती मुस्कान पर
माँ तब भी रो ही देती है।