जो चाहा तुम्हें तो क्या कसूर मेरा
मैं क्या जानता था कि पत्थर हो तुम
मैंने तो सब कुछ लुटा डाला तुम पर
क्या करूँ जो बेपरवाह हो तुम
न माँगा तुमसे कभी कुछ
न अब कुछ चाहता हूँ
सुकूँ से जान दे पाऊँ
यही बस माँगता हूँ
न दे पाओ ये भी
तो बस एहसान करना
मेरी मय्यत में तुम
इनकार करना
कि मैं तेरा ही कोई
इक सगा था
यूँ मुँह फेर लेना लाश से मेरी तुम कि
लगे कोई यूँ ही
बेआसरा था
जो चाहा तुम्हें तो क्या कसूर मेरा
मैं क्या जानता था कि पत्थर हो तुम
मैंने तो सब कुछ लुटा डाला तुम पर
क्या करूँ जो बेपरवाह हो तुम
3 comments:
Beautiful Post....
Sorry to say that it's a bad poem!
Very well written!
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