आज सोशल मीडिया पर एवं अन्यत्र भी महिला दिवस पर लाखों लेख देखने को मिल रहे हैं. एक पॉजिटिव बात जो नज़र आ रही है कि बमुश्किल ही सही, पुरुषों को महिलाओं की बराबरी का अर्थ समझ आ रहा है. जब मैं एक बालक था तो पड़ोस में एक अंकल घर चलाने में अपनी पत्नी की पूरी मदद करते थे. घर का सारा काम मिलकर करते थे - खाना भी बनाते थे और कपडे भी धोते थे. लेकिन आस पास के लोग उन्हें फेमिनिस्ट या साम्यवादी की उपाधि से सम्मानित नहीं करते थे. लोग अक्सर उन्हें जोरू का गुलाम कहकर उनका मजाक उड़ाते थे. बीस वर्षों में कुछ तो सुधार हुआ है. आज जब मेरी उम्र के लोग घर के काम में अपनी पत्नी की मदद करते हैं तो कम से कम उनके हम-उम्र उन्हें जोरू का गुलाम नहीं बल्कि सपोर्टिव कहते हैं. ये अलग बात है कि हमारे पेरेंट्स की उम्र के लोगों को अब भी ये गुलामी ही लगती है.
गलती सिर्फ हम पुरुषों की नहीं है कि हम सपोर्टिव नहीं है. हमारी परवरिश में बहुत सारी कमियां थी. बावजूद इसके कि हम और हमारी बहनें एक ही स्कूल में पढाई गईं और एक जैसा ही खाना हम दोनों को मिला, जब बहनों को खाना बनाना सिखाया गया तो हम लड़कों को क्यों नहीं सिखाया? क्यों उम्मीद की जाती रही कि बॉयज हॉस्टल में रहने वाले लड़के का तो कमरा गन्दा ही रहता है लेकिन गर्ल्स हॉस्टल में अकेले रहने वाली लड़की का कमरा चकमक साफ़ दिखना चाहिए. ऑफिस में भी एक महिला सहकर्मी के साथ किस तरह का व्यवहार सही है, यह बताने वाला कोई क्यों नहीं होता. जब भी हमें स्कूल में कोई लड़की पसंद आती थी तो टीचर्स और पेरेंट्स उसे हमारी बहन बना देते थे, वरना शायद हम उनसे ब्याह ही कर लेते. क्यों हमें सिर्फ दोस्त या सहपाठी की तरह दुसरे जेंडर के साथ घुलने मिलने नहीं दिया जाता? ये कहना कि लड़के जन्म से ही खुद को लड़कियों से सुपीरियर मानते हैं, गलत है. ऐसा परवरिश के दौरान उन्हें सिखाया जाता है.
एक बार जब मैं क्लास में दूसरे स्थान पर था तो एक लड़की पहले स्थान पर थी. मैं उससे इर्ष्या भी करता था और उससे आगे भी आना चाहता था. लेकिन क्यों उस समय किसी टीचर ने मुझे ये कह कर उकसाया कि 'एक लड़की को नहीं हरा सकते क्या?' बुद्धि का जेंडर से कोई कनेक्शन है - यह झूठ बचपन में हमारे दिमाग में क्यों भरा? और जब हम रियल लाइफ में खुद से बुद्धिमान महिलाओं से टकराते हैं तो हमारी कुंठित मर्दानगी ये बर्दाश्त नहीं कर पाती. मेरी पिछली नौकरी में जब मैं अपने दो फीमेल कलीग से कम्पीट कर रहा था तब मेरे बॉस ने मेरी मर्दानगी को ललकार कर कहा की तू क्या लड़कियों से भी हार जायेगा? क्यों लड़कियों से हार जाना इतना बुरा है? मेरिटोक्रेसी में ये लिंगभेद क्यों लाते हो यार. अगर मैं किसी लड़के से हार सकता हूँ तो किसी लड़की से भी. अभी हाल में मैंने एक बेहद उम्दा महिला आई एस अधिकारी को कहा कि आप जब मुख्य सचिव बनेंगी तो काम करने में मज़ा आएगा. उन्होंने हँसते हुए कहा कि तुमने देखा है किसी महिला आई ए एस को मुख्य सचिव बनाये जाते? मैं दंग रह गया. देश की सर्वोच्च नौकरी में भी मेरिट से ज्यादा यदि आपका जेंडर देखा जाता है तो गलत है.
एक बार मैंने अपने किसी दोस्त से कहा कि मुझे एक लड़की पसंद है क्योंकि जब उसने दसवीं का बोर्ड दिया था तो उसके मुझसे भी ज्यादा मार्क्स थे. और मैं जितने समय में सिर्फ बी टेक कर सका उतने समय में वो मास्टर्स कर पी एच डी करने पहुँच गयी. मुझे उत्तर मिला "अबे, लड़की पसंद करने में ये सब कौन देखता है बे?" तो फिर लड़का पसंद करने में ये क्यों देखते हैं? क्यों हम लड़कों से कहा जाता है की तुम पढाई में जितना अच्छा करोगे तुम्हें दुनिया उतना ही सफल मानेगी? फिर क्या यही मापदंड लड़कियों पर लागू नहीं होते? बुरा तब लगता है जब महिलाएं ही ऐसे व्यवहार को जस्टिफाई करने लगती हैं. अभी हाल में किसी अत्यंत सफल अकादमिक पुरुष की पत्नी ने हमसे कहा कि, " जो भी कहो, औरत को जो सुख पति के पीछे चलने में आता है, वो बराबर चलने में नहीं". अफ़सोस हुआ सुनकर. कई बार कई वरिष्ठ प्रशानिक अधिकरियों की घरेलु पत्नियों से ये सुनने को मिल जाता है कि जब हस्बैंड आई ए एस है तो हमें नौकरी करने की क्या ज़रूरत? ऐसा कभी किसी महिला आई ए एस के पति से सुनने को नहीं मिला.
इन सबका एक बहुत बड़ा कारण है एक मिथ की बच्चे पालना माँ का काम है. सच ये है की स्तनपान के अलावा ऐसा कोई चाइल्डकैअर कार्य नहीं है जो जेंडर बेस्ड हो. परन्तु क्योंकि हम पुरुषों को हमारे पिताओं ने और हमारी माताओं ने कुछ सिखाया ही नहीं इसलिए हम पंगु बने सिर्फ बच्चे को बाहर घुमाने के काम में लगा दिए जाते हैं. ये गलत है. शुक्र है कि हमारी पीढ़ी के पिता इन्टरनेट और पेरेंटिंग बुक्स के माध्यम से बच्चों को संभालना सीख रहे हैं. मुझे अभी भी याद है कि जब मैं बाप बना तो मेरे एक बहुत करीबी दोस्त ने मुझे बताया की दूध पीने के बाद अपनी बेटी को ऐसे ढकार दिलाना. मेरे एक दुसरे करीबी दोस्त ने ये बताया कि बेटियों को नहलाने में किस तरह का विशेष ध्यान रखना चाहिए. हम अपनी बेटियों या अपने बेटों की बेबी सिटींग नहीं करना चाहते. हम उन्हें पालना चाहते हैं. एक पैरेंट की तरह. हम नहीं चाहते की बेटी माँ से पूछे की मेरे शूज कहाँ है, मेरी बुक्स कहाँ है, खाने में क्या है? और हमसे सर्फ ये पोछे कि मम्मा कहाँ है. हमारे जैसे कई पुरुष अपनी पत्नियों के करियर में सहायक होना चाहते हैं और अपने बच्चों को पालने में माँ के बराबर भूमिका निभाना चाहते हैं, लेकिन हमें कोई सिखाने वाला नहीं है. हम फिर भी सीख रहे हैं और प्रयास कर रहे हैं. लेकिन हमें पुरुषों से बेहतर इंसान बनाने में औरतों की एक बड़ी मदद की ज़रूरत है.
इसलिए मैं आज महिला दिवस पर औरतों से आग्रह करूँगा की अपने बेटों को, अपने भाइयों को और अपने पुरुष मित्रों को घर संभालना सिखाएं - घर की सफाई, किचन के काम, बच्चों को पालना - सब सिखाएं. शायद कई पुरुष अपनी झूठी मर्दानगी बघारने के चक्कर में ये सब न करना चाहें, पर वे कुछ जो करना चाहते हैं, उन्हें कोई दूसरा पुरुष नहीं मिलता जो उन्हें सही बात सिखा सके. इसलिए अपने पुरुष साथियों को एक बेहतर इंसानबनाने में सहयोग करें. महिला दिवस की शुभकामनाएं.