आज सोशल मीडिया पर एवं अन्यत्र भी महिला दिवस पर लाखों लेख देखने को मिल रहे हैं. एक पॉजिटिव बात जो नज़र आ रही है कि बमुश्किल ही सही, पुरुषों को महिलाओं की बराबरी का अर्थ समझ आ रहा है. जब मैं एक बालक था तो पड़ोस में एक अंकल घर चलाने में अपनी पत्नी की पूरी मदद करते थे. घर का सारा काम मिलकर करते थे - खाना भी बनाते थे और कपडे भी धोते थे. लेकिन आस पास के लोग उन्हें फेमिनिस्ट या साम्यवादी की उपाधि से सम्मानित नहीं करते थे. लोग अक्सर उन्हें जोरू का गुलाम कहकर उनका मजाक उड़ाते थे. बीस वर्षों में कुछ तो सुधार हुआ है. आज जब मेरी उम्र के लोग घर के काम में अपनी पत्नी की मदद करते हैं तो कम से कम उनके हम-उम्र उन्हें जोरू का गुलाम नहीं बल्कि सपोर्टिव कहते हैं. ये अलग बात है कि हमारे पेरेंट्स की उम्र के लोगों को अब भी ये गुलामी ही लगती है.
गलती सिर्फ हम पुरुषों की नहीं है कि हम सपोर्टिव नहीं है. हमारी परवरिश में बहुत सारी कमियां थी. बावजूद इसके कि हम और हमारी बहनें एक ही स्कूल में पढाई गईं और एक जैसा ही खाना हम दोनों को मिला, जब बहनों को खाना बनाना सिखाया गया तो हम लड़कों को क्यों नहीं सिखाया? क्यों उम्मीद की जाती रही कि बॉयज हॉस्टल में रहने वाले लड़के का तो कमरा गन्दा ही रहता है लेकिन गर्ल्स हॉस्टल में अकेले रहने वाली लड़की का कमरा चकमक साफ़ दिखना चाहिए. ऑफिस में भी एक महिला सहकर्मी के साथ किस तरह का व्यवहार सही है, यह बताने वाला कोई क्यों नहीं होता. जब भी हमें स्कूल में कोई लड़की पसंद आती थी तो टीचर्स और पेरेंट्स उसे हमारी बहन बना देते थे, वरना शायद हम उनसे ब्याह ही कर लेते. क्यों हमें सिर्फ दोस्त या सहपाठी की तरह दुसरे जेंडर के साथ घुलने मिलने नहीं दिया जाता? ये कहना कि लड़के जन्म से ही खुद को लड़कियों से सुपीरियर मानते हैं, गलत है. ऐसा परवरिश के दौरान उन्हें सिखाया जाता है.
एक बार जब मैं क्लास में दूसरे स्थान पर था तो एक लड़की पहले स्थान पर थी. मैं उससे इर्ष्या भी करता था और उससे आगे भी आना चाहता था. लेकिन क्यों उस समय किसी टीचर ने मुझे ये कह कर उकसाया कि 'एक लड़की को नहीं हरा सकते क्या?' बुद्धि का जेंडर से कोई कनेक्शन है - यह झूठ बचपन में हमारे दिमाग में क्यों भरा? और जब हम रियल लाइफ में खुद से बुद्धिमान महिलाओं से टकराते हैं तो हमारी कुंठित मर्दानगी ये बर्दाश्त नहीं कर पाती. मेरी पिछली नौकरी में जब मैं अपने दो फीमेल कलीग से कम्पीट कर रहा था तब मेरे बॉस ने मेरी मर्दानगी को ललकार कर कहा की तू क्या लड़कियों से भी हार जायेगा? क्यों लड़कियों से हार जाना इतना बुरा है? मेरिटोक्रेसी में ये लिंगभेद क्यों लाते हो यार. अगर मैं किसी लड़के से हार सकता हूँ तो किसी लड़की से भी. अभी हाल में मैंने एक बेहद उम्दा महिला आई एस अधिकारी को कहा कि आप जब मुख्य सचिव बनेंगी तो काम करने में मज़ा आएगा. उन्होंने हँसते हुए कहा कि तुमने देखा है किसी महिला आई ए एस को मुख्य सचिव बनाये जाते? मैं दंग रह गया. देश की सर्वोच्च नौकरी में भी मेरिट से ज्यादा यदि आपका जेंडर देखा जाता है तो गलत है.
एक बार मैंने अपने किसी दोस्त से कहा कि मुझे एक लड़की पसंद है क्योंकि जब उसने दसवीं का बोर्ड दिया था तो उसके मुझसे भी ज्यादा मार्क्स थे. और मैं जितने समय में सिर्फ बी टेक कर सका उतने समय में वो मास्टर्स कर पी एच डी करने पहुँच गयी. मुझे उत्तर मिला "अबे, लड़की पसंद करने में ये सब कौन देखता है बे?" तो फिर लड़का पसंद करने में ये क्यों देखते हैं? क्यों हम लड़कों से कहा जाता है की तुम पढाई में जितना अच्छा करोगे तुम्हें दुनिया उतना ही सफल मानेगी? फिर क्या यही मापदंड लड़कियों पर लागू नहीं होते? बुरा तब लगता है जब महिलाएं ही ऐसे व्यवहार को जस्टिफाई करने लगती हैं. अभी हाल में किसी अत्यंत सफल अकादमिक पुरुष की पत्नी ने हमसे कहा कि, " जो भी कहो, औरत को जो सुख पति के पीछे चलने में आता है, वो बराबर चलने में नहीं". अफ़सोस हुआ सुनकर. कई बार कई वरिष्ठ प्रशानिक अधिकरियों की घरेलु पत्नियों से ये सुनने को मिल जाता है कि जब हस्बैंड आई ए एस है तो हमें नौकरी करने की क्या ज़रूरत? ऐसा कभी किसी महिला आई ए एस के पति से सुनने को नहीं मिला.
इन सबका एक बहुत बड़ा कारण है एक मिथ की बच्चे पालना माँ का काम है. सच ये है की स्तनपान के अलावा ऐसा कोई चाइल्डकैअर कार्य नहीं है जो जेंडर बेस्ड हो. परन्तु क्योंकि हम पुरुषों को हमारे पिताओं ने और हमारी माताओं ने कुछ सिखाया ही नहीं इसलिए हम पंगु बने सिर्फ बच्चे को बाहर घुमाने के काम में लगा दिए जाते हैं. ये गलत है. शुक्र है कि हमारी पीढ़ी के पिता इन्टरनेट और पेरेंटिंग बुक्स के माध्यम से बच्चों को संभालना सीख रहे हैं. मुझे अभी भी याद है कि जब मैं बाप बना तो मेरे एक बहुत करीबी दोस्त ने मुझे बताया की दूध पीने के बाद अपनी बेटी को ऐसे ढकार दिलाना. मेरे एक दुसरे करीबी दोस्त ने ये बताया कि बेटियों को नहलाने में किस तरह का विशेष ध्यान रखना चाहिए. हम अपनी बेटियों या अपने बेटों की बेबी सिटींग नहीं करना चाहते. हम उन्हें पालना चाहते हैं. एक पैरेंट की तरह. हम नहीं चाहते की बेटी माँ से पूछे की मेरे शूज कहाँ है, मेरी बुक्स कहाँ है, खाने में क्या है? और हमसे सर्फ ये पोछे कि मम्मा कहाँ है. हमारे जैसे कई पुरुष अपनी पत्नियों के करियर में सहायक होना चाहते हैं और अपने बच्चों को पालने में माँ के बराबर भूमिका निभाना चाहते हैं, लेकिन हमें कोई सिखाने वाला नहीं है. हम फिर भी सीख रहे हैं और प्रयास कर रहे हैं. लेकिन हमें पुरुषों से बेहतर इंसान बनाने में औरतों की एक बड़ी मदद की ज़रूरत है.
इसलिए मैं आज महिला दिवस पर औरतों से आग्रह करूँगा की अपने बेटों को, अपने भाइयों को और अपने पुरुष मित्रों को घर संभालना सिखाएं - घर की सफाई, किचन के काम, बच्चों को पालना - सब सिखाएं. शायद कई पुरुष अपनी झूठी मर्दानगी बघारने के चक्कर में ये सब न करना चाहें, पर वे कुछ जो करना चाहते हैं, उन्हें कोई दूसरा पुरुष नहीं मिलता जो उन्हें सही बात सिखा सके. इसलिए अपने पुरुष साथियों को एक बेहतर इंसानबनाने में सहयोग करें. महिला दिवस की शुभकामनाएं.
23 comments:
लेखक की यह मानसिकता किसी भी "बेटी बचाओ" आंदोलन से ऊपर है! वाह चंद्रमोहन! "असली मर्द" क्या होता है, तुमने बखूबी बता दिया।
This piece is more powerful than anything on gender rights that I have read over the years-coming from a male colleague -first hand experience makes it more emphatic than our feminist movements, narebaazee, protest et al...
Actually we are so unfair to boys when we stop them from crying and say-kya ladkiyon ki tarah rota hai...we stop fathers from taking care of their new borns, stop them from the kitchen...
Let's start treating our boys as human and not preparing them for some great mard competition wherein they are forever competing to be a muscle and flesh heap!
This piece is more powerful than anything on gender rights that I have read over the years-coming from a male colleague -first hand experience makes it more emphatic than our feminist movements, narebaazee, protest et al...
Actually we are so unfair to boys when we stop them from crying and say-kya ladkiyon ki tarah rota hai...we stop fathers from taking care of their new borns, stop them from the kitchen...
Let's start treating our boys as human and not preparing them for some great mard competition wherein they are forever competing to be a muscle and flesh heap!
सटीक, कई मामलों में मैं भी जीवन पड़ाव में आपके थोड़ा ही पीछे आपके समकक्ष भावनाओं को अनुभव कर रहा हूँ । बेटी बचाओ की विचारधारा के काफी ऊपर विचार।
धन्यवाद अजय। बिटिया के बाप होने का पूरा मज़ा उठाइये।
धन्यवाद मैम
Thank You
महिला जगत जननी है माता है बहन है पतनी है बेटी है ओर दोस्त भी। ऐसी महिला को नमन।
वर्तमान में कुछ महिलाओं ने महिला कानून का दुरुपयोग कर निर्दोष परिवार को झूठे मामलों में फँसाने के लिए खुब रूपए लूटे जा रहे हैं जो प्रशासन के सहयोग से 1 झूठी महिला की शिकायत पर कई पति परिवार की महिलाओं का शोषण करने वाला प्रशासन महिला दिवस पर बङी-बङी बात तो करता है लेकिन ऐसी महिलाओं को सहयोग नही करता।
मेरी बहन की शादी के 3 माह बाद ससुराल वालों ने हत्या की पुलिस विभाग ने FIR दर्ज नही की। हम आर्थिक रूप से मजबूत भी नही थे की मुकदमा दर्ज कर पाते। प्रशासन ने अपराधी का साथ दिया, महिला दिवस मुबारक।
आज जब मे बच्चो को ट्यूशन पढा CA बना एक घरेलू महिला से बिना दहेज के विवाह किया, प्यारी बेटी जन्मी लेकिन पत्नी के परिवार ने मुझे वृध माता-पिता से अलग रहने का दबाव बनाया। नही माना पत्नी की जिद्द तो पतनी रूश गई मायके मे रहकर झूठे दहेज के मुकदमे मे फंसाने की धमकी दी, 1 वर्ष बाद कर दिया दहेज का मुकदमा। विवेचक ने न 41A का नोटिस पालन किया ओर न ही घटना स्थल की जांच। मेरी 3 विवाहित बहन जिनका नाम FIR में नही था उनका नाम भी आरोप पत्र मे जोङा गया। एक लङका जो समाज में अपना नाम रोशन करना चाहेता था चंद पैसो के लिए भ्रष्ट पुलिस कर्मी के हाथो शिकार हुआ। छोटी बेटी से 2 साल तक पत्नी के परिवार ने मिलने नही दिया, बेटी की नंगी फोटो शोसल मीडिया पर पत्नी के भाई द्वारा ङाली गई। शिकायत पर भी सुनवाई नहीं हुई। राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग द्वारा POCSO मे SP को तत्काल फोटो शोसल मीडिया पर हटाने के आदेश दिया गया। SP साहब बोले बच्ची छोटी सी है यह है SP साहब की सोच। RTI की राज्य सूचना आयोग ने पुलिस विभाग को तलब किया तो पुलिस विभाग ने फोटो हटाने की बात लिख RTI का निस्तारण कराने का प्रयास किया। लेकिन फोटो नही हटी। फिर RTI ङाली तब फोटो शोसल मीडिया पर हटाई गई। प्रशासन के अधिकारी गण महिला दिवस पर बहुत बहुत बधाई।
महिला पर लेख लिखने से नही उनपर हो रहे दुर्व्यवहार पर चंद पैसो के लिए बिकने वाले अधिकारी पर जबतक कठोर दणङातमक कार्यवाही नही होगी न महिला सुरक्षित होगी न समाज।
सहाब आपको महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
आवश्यक सूचना – ये मेरे व्यक्तिगत विचार है, और मेरा उद्देश्य लेखक या किसी और की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का बिलकुल नहीं है| कृपया मुझे अन्यथा न लिया जाए|
आदरणीय लेखक महोदय,
क्या आप ऐसी किसी महिला को जानते है जिसने पुरुष दिवस पर पुरुषों के सम्मान और त्याग के बारे मे कोई लेख लिखा हो| अगर हाँ तो मुझे अवगत करने का कष्ट करें|
आपके लेख को पढ़ने के पश्चात मैं भी अपने कुछ विचार आपके समक्ष रखना चाहूँगा और महिला सशक्तिकरण के एक दूसरे परंतु कटु सत्य से आपको अवगत करना चाहूँगा| उम्मीद है की आप इससे आहत न होते हुये मेरी बात को समझने का और जमीनी सत्य जानने का प्रयास करेंगे| फुर्सत मे कृपया https://themalefactor.com/ को पढ़ने का कष्ट करें|
जैसा कि आपने लिखा कि महिला दिवस पर बहुत सारे लेख देखने को मिले, तो मैं ये कहना चाहूँगा की महिलाओं की तारीफ और पुरुषों की आलोचना, ये बड़ा ही आसान तरीका है लोगो से वाहवाही प्राप्त करने का| संभवत: आपने अपने लेख मे यही किया है| आपने “महिला दिवस” को “पुरुष आलोचना” दिवस बना दिया है, जिसमे आपने केवल ये दिखाया है की महिलाएं कितनी श्रेष्ठ है और पुरुष कितना खराब| आपने “कुंठित मर्दानगी” और “झूठी मर्दानगी” जैसे शब्द का प्रयोग किया, ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे आपको अपने पुरुष होने पर लज्जा का अनुभव हो रहा है, और खास कर महिला दिवस के मौके पर| महिला दिवस का ये मतलब तो नहीं कि आप एक तरफ से सारी पुरुष जाति की आलोचना शुरू कर दें| महोदय, हर पुरुष अत्याचारी नहीं होता और हर महिला बेचारी नहीं होती|
आपने जिक्र किया कि पुरुष को ये करना चाहिए वो करना चाहिए, पुरुष को ये नहीं आता पुरुष को वो नहीं आता; पुरुष की क्या ज़िम्मेदारी है सब बताया| परंतु आपने एक महिला के क्या कर्तव्य है अपने परिवार के लिए या बच्चों के लिए इसका जिक्र तक नहीं किया| ये कहाँ की बराबरी हुई; ये तो एकतरफा और पक्षपात वाली बात हुई| यदि पुरुष अपनी पत्नी का खयाल न रखे अपने बच्चों और परिवार की ज़िम्मेदारी न उठाए तो ऐसे पुरुष को दंडित करने के दर्जनों कानून है; परंतु अगर एक महिला अपने कर्तव्यों का पालन न करे; यहाँ तक कि अगर अपने दुधमुंहे बच्चे तक को छोड़ के चली जाए तो उसे दंडित करने का कोई तरीका किसी कानून की किताब मे नहीं लिखा है और न ही किसी को मालूम है|
अंत मे आपने लिखा कि महिला दिवस पर औरतों से आग्रह करूंगा कि अपने बेटों और भाइयों को ये सिखाये वो सिखाये| परंतु बेटियों और बहनों को क्या सिखाये इसके बारे मे कुछ टिप्पणी नहीं की, ऐसा क्यों? संभवत: आजकल समाज मे यही चल रहा है जिसे की feminism कहते है जिसका आजकल का अर्थ महिला सशक्तिकरण के नाम पर पुरुष शोषण है; और महिलाओं को सारे अधिकार, पैसा और मौज मस्ती चाहिए लेकिन ज़िम्मेदारी एक भी नहीं चाहिए| आप संभवत: feminism को सपोर्ट करने वाले प्रतीत होते है| परंतु समाज के किसी एक वर्ग के सशक्तिकरण के नाम पर किसी दूसरे वर्ग का शोषण कहा से उचित है|
(to be continued...)
अगर आप आस पास नजर डाले तो पाएंगे कि महिला सशक्तिकरण के नाम पर किस तरह पुरुष को भयंकर शोषण हो रहा है| महिला सशक्तिकरण अब पूरी तरह से पुरुष शोषण का पर्याय बन चुका है| मेरे हिसाब से पुरुष शोषण हमारे देश और समाज की एक बहुत बड़ी समस्या है; और यदि आप इससे सहमत नहीं है तो आप खुद भी इस समस्या का हिस्सा है| कोई भी व्यक्ति महिला सशक्तिकरण का राग तब तक ही अलापता है जब तक कि वो खुद या उसका भाई या पिता किसी महिला के झूठे आरोप मे न फंस जाए| महिलाओं के पास 49 एकतरफा कानून है जिनका वो पुलिस और वकीलो के साथ मिल के जमकर दुरुपयोग कर रही है| उदाहरण के तौर पर यदि कोई पुरुष किसी महिला को थप्पड़ मार दे तो वो महिला और आस पास के लोग उस पुरुष को जम के पिटेंगे और फिर उसे जेल मे डाल दिया जाएगा, 354 व अन्य कई धाराओं के तहत मामला दर्ज हो जाएगा; यदि कोई महिला किसी पुरुष को थप्पड़ मार दे तो आस पास के लोग सोचेंगे जरूर पुरुष की गलती होगी, उसके बाद वो महिला उस पुरुष से और लड़ेगी और फिर से पुरुष को जेल भेज देगी| यानि की महिला यदि दुष्ट हो तो भी हमारा ये नारी पूजक समाज उसे अबला ही समझेगा, परंतु दुष्ट महिला को दंडित करने का एक भी कानून नहीं है| यदि पति पत्नी पर हिंसा करे तो DV 2005 जैसे न जाने कितने कानून है; परंतु यदि पत्नी पति पर हिंसा करे या बूढ़े सास ससुर को मारे पीटे तो ऐसी उद्दंड महिला को दंडित करने का कोई प्रावधान है ही नहीं| नेता अभिनेता, क्रिकेटर, IAS, PCS, सरकारी अफसर; समाज के हर तबके के लोग ऐसी दुष्ट और लालची महिलाओं के शिकार बन चुके है| क्रिकेटर मोहम्मद शामी और अभिनेता जितेन्द्र इसके ताजा उदाहरण है| 498a, DP Act, DV 2005, 323, 354, 376, 377, 307, 125, 34, 328, 506 न जाने कितने एकतरफा ऐसे कानून है जो को महिला को सुरक्षा देने के लिए बनाए गए थे, लेकिन अब केवल धन उगाही के साधन बन चुके हैं| संविधान मे जब स्त्री पुरुष को एक समान दर्जा दिया गया है तो ऐसे एक तरफा कानून संविधान के ही नहीं बल्कि इंसानियत का भी उल्लंघन है| हालात ये है की पहले लोग एक सुंदर सुशील बहू की कामना करते थे पर अब बस झूठे मुकदमे न करे ऐसी बहू की कामना करते हैं| एकतरफा क़ानूनों की वजह से आज कल का पुरुष एक निरीह प्राणी सा बन कर रह गया है|
महिलाओं ने दहेज, रेप, घरेलू हिंसा के झूठे मुकदमे लगा के समाज का जीना मुश्किल कर रखा है| लाखों पुरुष हर साल आत्महत्या कर रहे है; परिवार बर्बाद हो रहे है| जब बाद मे आरोप और मुकदमा झूठा साबित भी हो जाए तो उस महिला को कोई दंड नहीं| यदि यकीन न हो तो कुछ समय महिला थाने और फ़ैमिली कोर्ट मे व्यतीत कीजिये; आपको पता चल जाएगा की किस तरह महिलाएं कानून का दुरुपयोग करके पुरुष और पुरुष परिवार का शोषण करने मे जी जान से लगी हुई है, और मुकदमे वापस लेने के नाम पर पुरुष से मनमानी रकम वसूल रही है; और एक अच्छे खासे पुरुष को भिखारी बना देती है; पुरुष की नौकरी, मान सम्मान सब चला जाता है| परंतु सरकार और कानून बनाने वाले बस बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के ही राग अलापने मे व्यस्त है; सारी सरकारी योजनाए और फ़ंड सिर्फ महिलाओं के लिए ही है| क्या पुरुष इंसान नहीं है, अगर एक भी तरीका पुरुष सुरक्षा या एक भी सरकारी योजना या एक भी कानून पुरुष हित का हो तो आप मुझे बताए| एक निर्दोष पुरुष अपने आप को झूठे मुकदमे से कैसे बचाए इसका कोई तरीका नहीं है; क्या पुरुष सिर्फ वोट और टैक्स वसूलने के लिए ही है? ऊपर से महिला आयोग जैसी संस्थाए आग मे घी डालने का काम कर रही है, महिला आयोग आज कल महिला सशक्तिकरण के नाम पर परिवार और शादिया तोड़ने का काम बाखूबी कर रहा है| फोकट का पैसा पाने के लिए लोगो ने विवाह जैसी पवित्र परंपरा को एक धंधा बना के रख दिया है जिसमे कानूनी डंडा दिखा के बड़ी ही शान के साथ बेटी का सौदा किया जाता है| जहां सरकार महिला को सशक्त बनाने का नारा दे रही है वही आदरणीय कानून मंत्री का ये बयान कि “महिलाओं को maintenance और alimony देने मे देर नहीं होनी चाहिए” काफी हास्यास्पद है| आज कल की न जाने कितनी पढ़ी लिखी महिलाएं पुरुषों से पैसा वसूल कर बिना काम किए मुफ्त के पैसे पर परजीवी की तरह जीवन व्यतीत कर रही है, तो फिर महिला को शिक्षा देने का क्या लाभ! उन पर किया गया शिक्षा का व्यय तो व्यर्थ ही हुआ ना| निर्दोष पति पर झूठे मुकदमे करना, कानून का दुरुपयोग करना, बूढ़े सास ससुर को मारना पीटना और घर से निकाल देना ये सब किस आधार पर महिला सशक्तिकरण है?
(continued from above...)
सीता या सावित्री जैसी महिलाओं का गुणगान करने मे कोई बुराई नहीं है परंतु आजकल की महिलाओं मे ताड़का और शूर्पनखा जैसी राक्षसियों की संख्या काफी बढ़ चुकी है| महिला और पुरुष दोनों का त्याग परिवार के लिए बराबर है; इसलिए अब नारी पूजक मानसिकता से बाहर आना जरूरी है| यदि माता पूज्यनीय है तो पिता भी कम पूज्यनीय नहीं है, पिता वही शख्स है जो दिन भर कोल्हू के बैल की तरह काम करके अपने परिवार को पालता है| आज जितने भी कठिन और जोखिम भरे कार्य है उन्हे करने के लिए हमेशा से ही पुरुष का ही चुनाव किया जाता रहा है| जो ये कहते है की “एक बेटी दस बेटों के बराबर है” उनसे मेरा अनुरोध है कि वो स्वयं क्यों नहीं पहले अपनी कुर्सी किसी महिला को दे देते और अपने दस आदमियों की ज़िम्मेदारी एक महिला को क्यों नहीं दे देते हैं; क्यों वो बार्डर पर तैनात दस सैनिकों को हटा के सिर्फ एक महिला को तैनात करते है|
आज हर तीसरा या चौथा भारतीय पुरुष महिला कानून के द्वारा प्रताड़ित है| आपसे मेरा अनुरोध है की सर्वप्रथम आप अपने आस पास महिला और पुरुष की सामाजिक और कानूनी हालत का अच्छे से अवलोकन करे| पुरुषों की आलोचना करने और महिला सशक्तिकरण के बजाय परिवार सशक्तिकरण के उपाय तलाशे जिसमे की देश और समाज का कल्याण है| आज समय की जरूरत है की महिला सशक्तिकरण से ऊपर उठ कर सभी क़ानूनों और योजनाओं को महिला और पुरुष दोनों के लिए समान करना चाहिए| महिला आयोग की तर्ज पर पुरुष आयोग का गठन होना चाहिए| लिंग के आधार पर किए जा रहे सारे भेद भाव समाप्त होने चाहिए| केवल महिला होने के कारण मिलने वाले फायदे और योजनाएँ बंद होनी चाहिए| पुरुष सुरक्षा के लिए कड़े कदम उठाए जाने चाहिए|
महिला दिवस की शुभकामनायें|
धन्यवाद|
Please read the below comments too..
On the occasion of Womens day the whole male feternity is being abused by Taslima Nasreen: She stated on twitter: I dont call them assholes, I call them men" if you don't believe please visit the twitter handle of @taslimanasreen you will find the greatest disrespect against the male community this is women empowerment these days.
If you search for Grihalakshmi controversy, let me tell you it is about a women feeding a child and asking for privacy, what do we call it a shameful act or a respected work by not breast feed but to expose it on front page of a magazine published in kerala.
I remember the Mumbai stampede happened on railway station when @The_Hindu published a news on women being molested by an onlooker where as he was helping and new publisher accepted its incorrect reporting.
On women's day in Delhi few men were asked to roam around in delhi for #raperoko movement, and now on the mane of women empowerment, girls will be asked to compete men in roaming around naked who will speak then.
No one from you above talked about the achievements of women not to the country but to the family.
Lets change the scenario, and see the reality if that could ever be possible.
Can a male be expected to work the daily household as a boy, can a boy get any proposal of marriage if he is not earning can a bride accept that position... the fact is the family of the girl ask the first thing " ladka kya karta hai, kitna kamata hai, kya qualification hai" if I am wrong then I am on different planet.
Tell me what would you do if men starts to give birth to a child, what will you do if a male is being asked to breast feed, what will you say if the male is asked to earn for the family... What are the possibilities that a man can do..ha ha ha.
He can and only earn but what a women can do she is much more powerful than a man because women has all the more dimensions to the nature but not men.
It is not that this is given by the current feminist society it is the nature which has done it.
Nature has made a women such a multidimensional that she can do what a man can't, we all have mothers that's the reason we exist but to call women a weak is an abuse to a women and those groups which are running on the name of women empowerment are nothing more than money making NGOs whether is it Nirbhaya fund (where funds have not been passed) or any other NGO. This a vote bank politics started by congress and diverted by BJP nothing more a new gender votebank has arisen in the country. The puppets of this creation is Ranjana Kumari, Taslima NAsreen, Nandita das, Maneka Gandhi,Renuka Chowdhary.. the list is quite long but the fact is this gang is just disgruntled divorcee women who are not satisfied with their husbands or families so they started to provoke a class of females to frame such laws through vote bank.. check how Domestic violence act was introduced in India in 2005 and how 498A law was introduced by maneka Gandhi in 1983.
The so called Hindu culture ask for 7 janmo ka sath, where is it, just flooded by money do get a shocker see the reality below..
Now tell me who know amongst you that the divorce industry has grown to a bigger industry to INR 4500 crores, shocking now it is not as the divorce rate has increased to 5 times in past 10 years just because of criminal intervention in civil matters, so if a women is not satisfied with her husband she just opt for criminal case where a husband, if capable of making payment of the desired amount demanded by wife pays and moves on after 498A false case and subsequently withdraws the case. Now a basic question what will happen if the husband is not able to pay or not willing to pay...
He has two options: either go to jail or go for... any guesses... just suicide... or run away(underground)... but an innocent from a respected family who is incompetent to pay usually chooses suicide..
The ground reality is there is no forum to listen to men when you talk about fundamental rights to life. There is commission for women, child senior citizens even we have commission fro animals and plants, who is supporting male after he attains the age of 18.. The fact is NONE.
Now I would like to bring to your notice on the ground reality of issues which are being highlighted in past few years.
Could anyone know an agency National Crime Record Beauro (NCRB). This agency has published data of 2015 where 96,000 men did suicide in one year out of which 65,000 were husbands did suicide due to family disputes not financial. Total death has rise to more than 7 lacs in 10 years.
There were 186 children thrown in jail in 498A mere allegations, there is a separate barak in Tihar jail of SAAS and NUNAD on 498A allegation, there are 100 soldiers die every year as no one to listen to family problems of men.
Government is running beti bachao beto padhao program, but the fact is this is Unconstitutional as 21A article talks about equal education to all, our constitution has been mis understood by the judiciary there was no problem in framing of law, Indian constitution has given special favours to Women under article 15(3) because of respecting her being "Srishti Janani" but law makers have taken it to next level and given them a privilege to kill children there is no penalty... Have you ever heard or even any case where a women after killing 13 children has not been hanged just because she is a women. These law makers are making human bombs by supporting such Women Centric Laws and the only problem is biased treatment.
Now a new law is in the making that is Marital Law, those who are supporting the women empowerment must get it to their head, it is a bomb implanted by feminist in this law...
A married wife can file a fake case against her husband on mere allegations and there is no jail for six months without asking husband a single question.
I feel sad as nothing a man can do what a woman can:(
Women can file false 497 (adultery) but a reverse is not possible)
Women can file false DV case (but the reverse is not possible)
Women can file false Marital Rape (but the reverse is not possible)
Women can file false 498a(dowry harassment) (but the reverse is not possible)
Women can file false 307(attempt to murder) (but the reverse is not possible)
Women can file false 354(stalking) (but the reverse is not possible)
There are more than 3 crore cases pending in lower courts and around few lacks in High courts related to criminal cases arising out of matrimonial disputes.
Now you will find more females in family court rooms compared to red light area, what is it the New Indian Men are more abusive towards their wives or is it the wives more irritated because she can't reach here expectation of women empowerment.
Fake Women Empowerment is a curse to the society where women do what a man cant, file fake cases, kill their children, stop breast feeds, roam naked on streets, involved in adultery. Yes in today world our Women is empowered enough. Stop Legal Terrorism and Legal Extortion industry. enough is enough!
In today India, fathers are also being trapped in rape charges of daughter. I heard an abuse on this relationship in my childhood... Now a days it's being proved true😂😂
To those who Jo beti k pyaar nahi maje uthane ki Nazar se dekhte hai..
Shame on you😎
शायद लेखक के पास जवाब नहीं ओर आपने जो तथ्य दिए महोदय उसका लेखक जवाब नहीं दे सकता। समाज में महिला है तो पुरूष भी लेकिन लेखक यह भूल गए अपने बच्चो के लिए परिवार के लिए दो पैसा कमाने वाले मजदूर ओर लोगों को लेखक के अधीनस्थ किस प्रकार लूटते है
महोदय,
आजकल महिला सशक्तिकरण के नाम पर महिलाओं ने समाज मे हाहाकार मचा रखा है, महिलाओं ने झूठे मुकदमे लगा के पैसे ऐंठते हुये आम आदमी का जीना मुश्किल कर रखा है| आज जरूरत है की स्त्री पुरुष के भेद भाव से ऊपर उठ कर सबको समान दृष्टि से देखना चाहिए, सारे कानून और सुविधाएं समान रूप से सबको मिले| महिला सुरक्षा के साथ ही पुरुष सुरक्षा भी सुनिश्चित की जाए| समान अपराध के लिए समान दंड मिले चाहे वो महिला हो या पुरुष| कोई भी पद सिर्फ इसलिए न दिया जाए की सिर्फ वो एक महिला है, काबलियत के बल पर पद दिया जाए|
आजकल की महिला कानूनी रूप से कितनी सशक्त और पुरुष कितना निरीह है इसके लिए कुछ उदाहरण देता हूँ|
1. जैसे की अगर पत्नी अपने पति से सोने का हार लाने की जिद्द करे, सास ससुर को घर से निकालने की जिद्द करे, अनाप शनाप पैसे की जिद्द करे या फिर अपने माँ बाप को साथ रखने की जिद करे, या अपने पुरुष मित्र के साथ शारीरिक संबंध बनाती रंगे हाथों पकड़ी जाए, सास ससुर के खाने मे धीमा जहर मिलाती हुई पकड़ी जाए; यदि पति चुप रहा तो ठीक नहीं तो सीधे वो पुलिस थाने जा के बड़ी ही आसानी से marital रेप, अननेचुरल सेक्स या फिर रेप, दहेज या फिर घरेलू हिंसा का मुकदमा करवा के पति और उसके पूरे परिवार का बड़े ही आराम से उत्पीड़न कर सकती है| पुलिस, जज, वकील सभी सिर्फ महिला की बात को सच मान लेंगे, वो भी बिना किसी प्रमाण के| marital रेप के मामले में पति पत्नी के बीच का शारीरिक संबंध रेप था या प्यार इसे कौन साबित करेगा, क्या पति पत्नी के कमरे मे कैमरे की व्यवस्था करनी होगी? महिला के मौखिक बयान पर ही सारे मुकदमे दर्ज हो जाएंगे, पुरुष को सफाई देने का मौका तक नहीं मिलेगा| बाद मे जब मुकदमे झूठे पाये जाएंगे, उसके बाद भी ऐसी दुष्ट पत्नी को दंड नहीं दिया जाएगा|
2. यदि शादी के सात साल के भीतर पत्नी की मृत्यु हो जाए तो पति और पूरे पति परिवार पर दहेज हत्या का मुकदमा धारा 304B के तहत अपने आप ही दर्ज हो जाएगा| उसके विपरीत यदि पति की मृत्यु हो जाए तो पत्नी को पति का सारा बैंक बैलेन्स, PF, मकान और उसकी पूरी जायजाद मिल जाएगी| जब कोई सैनिक बार्डर पर शहीद होता है तो उसका मुआवजा या सरकारी इनाम क्या आपने कभी शहीद की बूढ़ी माँ को मिलते कभी देखा है; वो भी उसकी विधवा पत्नी को मिलता है, जिसे ले कर वो फुर्र हो जाती है और अपनी सास या ससुर की कोई परवाह किए बिना ही दूसरी शादी कर लेती है|
3. अभी हाल मे ही कुछ प्रदेशों मे 12 साल की उम्र से कम लड़की के साथ रेप करने मे तुरंत फांसी देने का कानून पास किया गया है; परंतु क्या गारंटी है कि इसका दुरुपयोग नहीं होगा, और दुरुपयोग को कैसे रोका जाएगा इसकी कोई चर्चा नहीं|
4. तीन तलाक का कानून एक बार फिर से पुरुष उत्पीड़न को बढ़ाएगा, यदि कोई महिला झूठ जा के बोल दे की उसके पति ने उसे तीन तलाक दिया है तो पति को सजा जरूर मिलेगी, लेकिन महिला की सत्यता कौन पता करेगा? इसका दुरुपयोग न हो और दुरुपयोग को कैसे रोका जाएगा किसी को नहीं मालूम| बस वोट बैंक और महिलाओं को खुश करने के लिए सरकार और कानून मंत्रालय एक पर एक पुरुष उत्पीड़न के लिए कानून बनाने पर लगा हुआ है; परंतु पुरुष सुरक्षा के लिए कोई बात नहीं, कोई कानून नहीं| ये कैसे समाज मे जी रहे है हम जहा पुरुष उत्पीड़न और महिला सशक्तिकरण मे फर्क ही नहीं रह गया है|
5. Adultery के लिए सिर्फ पुरुष को ही दंडित किया जा सकता है, महिला को adultery के लिए दंडित करने का कोई कानून या प्रावधान नहीं है|
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6. यदि किसी की पत्नी किसी और पुरुष से शारीरिक संबंध बनाती है और उसका बच्चा पैदा करती है, तो भी सब जानते हुये उस बच्चे का पालन पोषण उसके पति को ही करना होगा; न किया तो झूठे मुकदमों का पूरा पैकेज|
7. NCRB डाटा के अनुसार महिलाओं के किए गए दहेज, रेप या घरेलू हिंसा के ज़्यादातर मुकदमे बाद मे झूठे पाये जाते है|
दुष्ट पुरुष को दंडित करने के लिए ढेरों कानून और तरीके है परंतु दुष्ट महिला को दंडित करने का कोई तरीका या कानून नहीं है| ज़्यादातर तो अभी इसी भ्रम मे है कि सारी महिलाएं अबला है, जबकि अपराधी महिलाओं की संख्या अब बहुत बढ़ चुकी है| अखबार और टीवी ऐसी खबरों से भरे पड़े है की महिला ने पति का कत्ल किया, महिला ने सास ससुर का कत्ल किया, महिला ने प्रेमी के साथ मिल कर अपने बच्चों तक का कत्ल किया, महिला ने रेप का झूठा आरोप लगा के पैसे ठगे, महिला ने सरेआम किसी पुलिस वाले या फौजी को पीटा| अगर एक आम आदमी आज अगर ऐसी महिलाओं का बहिष्कार नहीं करता और आवाज नहीं उठाता और हाथ पर हाथ रख के बैठा है तो वो सिर्फ अपनी बारी का इंतजार कर रहा है| अगर आज हमने आवाज नहीं उठाई तो आगे आने वाली नस्लें हमे कोसेंगी की हमने क्यों समय रहते आवाज नहीं उठाई!
महिलाओं ने चारो तरफ कानूनी गुंडागर्दी का माहौल बना के रखा हुआ है| कभी किसी ऐसे व्यक्ति से मिल के देखिये जिसने शादी मे एक पैसा दहेज में न लिया हो और फिर भी दहेज का झूठा मुकदमा झेल रहा हो, या फिर उस बूढ़े बाप से मिलिये जिसके जवान बेटे ने दहेज के झूठे मुकदमे के कारण अत्महत्या कर ली हो| निशा शर्मा, जसलीन कौर, रोहतक सिस्टर्स न जाने कितनी ऐसी क्रिमिनल महिलाएं है जिन्होने झूठे मुकदमे करके पुरुषों को फंसाया, सरकार ने इन्हे सम्मानित किया, इनाम दिये, youth icon घोषित किया; बाद मे सब झूठी साबित हुई| लेकिन क्या उन निर्दोष पुरुषों से फिर किसी ने माफी मांगी, क्या इन महिलाओं को कोई सजा दी गई! पुरुष का मान सम्मान और जीवन इतना सस्ता है जिसे जब चाहे छीना जा सकता है|
अतः अब महिला सशक्तिकरण का पाठ छोड़ के समानता का पाठ पढ़ने की आवश्यकता है| किसी एक वर्ग को सशक्त बनाने के बजाय पूरे समाज को सशक्त और भयमुक्त बनाने की ओर पहल करनी होगी| सारे एकतरफा कानून खत्म करने होंगे, समान अपराध के लिए समान सजा का प्रावधान करना होगा| कानून का दुरुपयोग और झूठे मुकदमे करने वालों को दंडित करना होगा फिर वो चाहे कोई महिला या पुरुष हो, पुलिस हो, जज या वकील हो अथवा सरकारी अफसर हो|
जो लोग अभी भी नारी पूजक बने हुये है है और जान बुझ कर सच्चाई स्वीकार नहीं करना चाहते, और सोचते है कि उनके साथ तो ऐसा वैसा कुछ हो ही नहीं सकता, ऐसे लोगों के साथ मेरी पूरी सहानुभूति है|
धन्यवाद|
महोदय आपके विचारों से सहमत हूँ लेकिन लेखक को परिवार को बर्बाद करने वाले झूठे मामलों में कोई मतलब नही एक प्रशासनिक अधिकारी होने के नाते वह समाज के साथ नही खङा है
Awesome sir...जोरू का ग़ुलाम वाली बात हद दर्जे तक सही है...यहाँ तक की पिछली पीढ़ी की महिलाएँ भी इस अलंकरण का प्रयोग करती हैं...कई बार समझ में नहीं आता कि क्यूँ 'दहेज की माँग' हो या 'बहू को बेटी ना समझ पाना' हो या 'पोते की माँग हो' इनमें भी महिलाएँ ही महिलाओं की ज़्यादा क़द्दावर दुश्मन हैं...स्वयं का भोगा यथार्थ उन्हें स्वयं-वेदना तक ही पहुँचा पाया है, पर-वेदना की संवेदना तक पहुँचने में शायद समय है,या दरकार है इंतज़ार है कुछ सरकारी विज्ञापनों का जो आँखे खोलने वाले हों और इंसान को इंसान की तरह जीना सिखाते हों
well, you have touched a raw nerve.
The world over issue is same.
You should check this one out ..
https://www.ted.com/talks/tony_porter_a_call_to_men?language=en
https://www.acalltomen.org/
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