आओ इस भीड़ में शामिल तुम भी हो जाओ |
मेरी हालत पे दो आँसू तुम भी रो जाओ ||
की जिसके फूल भी चुभते हों, और शाखें भी डरायें |
ऐसे किसी कैक्टस के बीज तुम भी बो जाओ ||
जिसने महरूम कर दिया हमें, नींद से औ' सुकून से |
उसी के नाम की लोरी सुना के कहते हो की सो जाओ ||
मैं गिर गया हूँ ज़मीन पर, मगर अभी मारा नहीं |
मैं उठ के काटने दौडूंगा, झुक कर मेरे करीब न आओ ||
उन्हीं से होती थी सुबह, उन्ही से शाम ढलती थी |
जो वो नहीं हैं आस - पास, तो तुम आओ या कि जाओ ||
Composed on 2nd december 2008
Saturday, December 6, 2008
मुंबई में आतंक
कोई घर में घुस के मेरे
माँ का आँचल खींच गया
और हम चौकीदारों से
इस्तीफा लेते रह गए|
रगों में खून ही है अभी
या पिघलकर पानी हो गया ?
की कोई पीटता रहा हमें
और हम वार्ता करते रह गए|
जो सीना ठोकते थे लगाकर आग
वो छिप बैठे बिलों में भागकर अपने
लगी जब आग भारत में
बिहारी - मराठी देखते रह गए|
खुदा का शुक्र है की मर्द थे कुछ
जो कूद पड़े उस आग में;
जो तुम बुड्ढों पे बात आई
तो तुम बयान देते रह गए |
Composed on 29th November 2008
माँ का आँचल खींच गया
और हम चौकीदारों से
इस्तीफा लेते रह गए|
रगों में खून ही है अभी
या पिघलकर पानी हो गया ?
की कोई पीटता रहा हमें
और हम वार्ता करते रह गए|
जो सीना ठोकते थे लगाकर आग
वो छिप बैठे बिलों में भागकर अपने
लगी जब आग भारत में
बिहारी - मराठी देखते रह गए|
खुदा का शुक्र है की मर्द थे कुछ
जो कूद पड़े उस आग में;
जो तुम बुड्ढों पे बात आई
तो तुम बयान देते रह गए |
Composed on 29th November 2008
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