आओ इस भीड़ में शामिल तुम भी हो जाओ |
मेरी हालत पे दो आँसू तुम भी रो जाओ ||
की जिसके फूल भी चुभते हों, और शाखें भी डरायें |
ऐसे किसी कैक्टस के बीज तुम भी बो जाओ ||
जिसने महरूम कर दिया हमें, नींद से औ' सुकून से |
उसी के नाम की लोरी सुना के कहते हो की सो जाओ ||
मैं गिर गया हूँ ज़मीन पर, मगर अभी मारा नहीं |
मैं उठ के काटने दौडूंगा, झुक कर मेरे करीब न आओ ||
उन्हीं से होती थी सुबह, उन्ही से शाम ढलती थी |
जो वो नहीं हैं आस - पास, तो तुम आओ या कि जाओ ||
Composed on 2nd december 2008
2 comments:
bahut sahi likhte ho sahab..
bashir ki raah pe chal rahe ho.. lage raho launde..
awesome....
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