Saturday, December 6, 2008

ग़ज़ल

आओ इस भीड़ में शामिल तुम भी हो जाओ |
मेरी हालत पे दो आँसू तुम भी रो जाओ ||

की जिसके फूल भी चुभते हों, और शाखें भी डरायें |
ऐसे किसी कैक्टस के बीज तुम भी बो जाओ ||

जिसने महरूम कर दिया हमें, नींद से औ' सुकून से |
उसी के नाम की लोरी सुना के कहते हो की सो जाओ ||

मैं गिर गया हूँ ज़मीन पर, मगर अभी मारा नहीं |
मैं उठ के काटने दौडूंगा, झुक कर मेरे करीब न आओ ||

उन्हीं से होती थी सुबह, उन्ही से शाम ढलती थी |
जो वो नहीं हैं आस - पास, तो तुम आओ या कि जाओ ||

Composed on 2nd december 2008

2 comments:

Kirti said...

bahut sahi likhte ho sahab..

bashir ki raah pe chal rahe ho.. lage raho launde..

subway said...

awesome....