ढूँढ रहा हूँ...
बैठा हूँ बर्फ की चादर पर
और ढूंढ रहा हूँ शीतलता
लहरों पर हूँ सवार, फिर क्यूँ
दीखती नहीं कोई चंचलता ?
पेड़ों कि छाया के नीचे
क्यों धूप जलाती है मुझको ?
सूखे रेतों के टीलों पर
वारि क्यों गलाती है मुझको ?
जब ध्यानमग्न हो बैठा हूँ
तो क्यों है ऐसी आकुलता?
बैठा हूँ .....
रातें मुझको बहकाती हैं
करती नयनों में उजियारा
और डरता हूँ दोपहरों से
जो फैला देती अंधियारा
जब स्वच्छ दीखता है जल, तो
फिर कहाँ है उसकी निर्मलता?
बैठा हूँ....
माली बगिया में ढूंढ रहा
फूलों कि खोयी सुरभि को
ढूँढता यज्ञ वेदी उठकर
अपने अन्दर कि अग्नि को
और ढूंढ रहा मैं शक्ति को
जो हर ले मेरी दुर्बलता
बैठा हूँ ....
बैठा हूँ बर्फ की चादर पर
और ढूंढ रहा हूँ शीतलता
लहरों पर हूँ सवार, फिर क्यूँ
दीखती नहीं कोई चंचलता ?
पेड़ों कि छाया के नीचे
क्यों धूप जलाती है मुझको ?
सूखे रेतों के टीलों पर
वारि क्यों गलाती है मुझको ?
जब ध्यानमग्न हो बैठा हूँ
तो क्यों है ऐसी आकुलता?
बैठा हूँ .....
रातें मुझको बहकाती हैं
करती नयनों में उजियारा
और डरता हूँ दोपहरों से
जो फैला देती अंधियारा
जब स्वच्छ दीखता है जल, तो
फिर कहाँ है उसकी निर्मलता?
बैठा हूँ....
माली बगिया में ढूंढ रहा
फूलों कि खोयी सुरभि को
ढूँढता यज्ञ वेदी उठकर
अपने अन्दर कि अग्नि को
और ढूंढ रहा मैं शक्ति को
जो हर ले मेरी दुर्बलता
बैठा हूँ ....
1 comment:
baap re baap! Gadar! kabhi fursat mile to shayad...shayad...in prashno ka uttar meri kavita "Ek..." me mil jaye!
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