वो पौधा कैसे खिल उठा?
ये मरियल सा दिखता पौधा
इकदम से कैसे जी उठा?
कल तक तो न कोई कोंपल थी
न कलियों की उम्मीदें ही
इकदम से कैसे उपवन ये
फूलों का गुच्छा बन बैठा?
तुम आए थे तब सूखा था
सब थका-थका, सब रूखा था
ये सब फिर कैसे बदल गया?
हर तिनका कैसे जी उठा?
तुम कौन हो माली बतलाओ
माली हो या हो जादूगर?
बस इक तेरे आ जाने से
आँगन-उपवन सब खिल उठा?
चाहे जो भी हो ये जादू
इसको तुम रोक न देना अब
मैं भी खिल जाऊँ फूलों-सा
जैसे सब कुछ है खिल उठा।
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