Friday, May 30, 2014

माली या जादूगर

कल तक जो था मुरझाया सा
वो पौधा कैसे खिल उठा?
ये मरियल सा दिखता पौधा
इकदम से कैसे जी उठा?

कल तक तो न कोई कोंपल थी
न कलियों की उम्मीदें ही
इकदम से कैसे उपवन ये
फूलों का गुच्छा बन बैठा?

तुम आए थे तब सूखा था
सब थका-थका, सब रूखा था
ये सब फिर कैसे बदल गया?
हर तिनका कैसे जी उठा?

तुम कौन हो माली बतलाओ
माली हो या हो जादूगर?
बस इक तेरे आ जाने से 
आँगन-उपवन सब खिल उठा?

चाहे जो भी हो ये जादू
इसको तुम रोक न देना अब
मैं भी खिल जाऊँ फूलों-सा
जैसे सब कुछ है खिल उठा।


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