हर मोड़ पर मुड़ कर देखा
रास्ता बढ़ता ही जाता था
तेरा इंतज़ार
हर पल
करता ही जाता था
फिर चलते-चलते इक रोज़
थक गया मंज़िल की तलाश में
वहीं इक मोड़ पर तुम आए
कहा तुमने कि दे दूँ साथ अगले मोड़ तक
मैंने उठ कर देखा
अब रास्ते नहीं थे
न कोई मोड़ नज़र आया
न जाने कैसे
जो अब तक मोड़ था
इक राह का बस
तुम्हारे आ जाने से
मंज़िल बन गया।
4 comments:
sir ji aap kamaal ka likhte ho
आपकी तीन कवितायेँ पढ़ी. मेरे विचार में अच्छी कविता नहीं हैं ये. पर आपका राजनीति वाला लेख अच्छा लगा. अच्छी चीजें लिखते रहिये. धन्यवाद!!
Koun kehta hai ki yeh ek achi kavita nahi hai. Only people who have fallen in love can empathise with the state of poet's mind.
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