कैसे बताऊँ किसे ज़्यादा चाहता हूँ
उसे, जिसने धूप सह कर सींचा है इस बगिया को
या जो खुद फूल बनकर खिल गई है आंगन में
वो जिसने थामा है हाथ हर अच्छे बुरे पल में
या वो जो हर अच्छे पल के होने की वजह है
कैसे बताऊँ किसे ज़्यादा चाहता हूँ
एक वो है जिसको चाँद की तरह याद किया है हर पल
और इक वो है जो चंदा की तरह ही प्यारी है
एक मेरे बगल में बैठे साथ दुनिया बुन रही है
और एक वो जिसे हम दोनों अपनी दुनिया मान बैठे हैं।
ये ना होती तो न होता मेरे होने का अहसास
वो न होती तो हम दोनों के होने का कोई मतलब ही न होता।
कैसे बताऊँ किसे ज़्यादा चाहता हूँ
एक को दिल दे बैठा आशिकी में
दूसरी खुद दिल बनके पैदा हुई
एक के सामने दिल खोलके रो लेता हूँ
दूसरे के रोने पर दिल दहल ही जाता है
एक हमसफर है, साथी है, इस डगर की
और दूसरी - इसी सफर की मंज़िल
कैसे बताऊँ किसे ज़्यादा चाहता हूँ
2 comments:
मन को छूने वाली कविता प्रणाम सर जी
Waah sir, istri ek maa bhi hai , biwi bhi hai aor beti bhi hai , teeno roop main wo mahan hai . Bahut bhawook kavita hai .
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