अक्सर गर्म रोटियों की खुशबू में देखा है तुम्हें
सूंघा है सूखते धुले कपडों में...
छुअन सी महसूस हुई है
जब भी फिसली चादर, खींच कर
दोबारा ओढी है मैंने...
किसी सूती साड़ी के आँचल के पीछे
चावल से कंकड़ बीनते अब भी दिख जाती हो...
रसोई से आती किसी खनक में
आवाज़ घुल कर आ जाती है तुम्हारी...
मन्दिर के जलते दीये में डलता घी
तुम्हारे उन कोमल हाथों की याद दिला जाता है...
दीये की लौ हिल कर बताती है
कि कैसे तुमने अभी हल्का सा सराहा था उसे...
थकता है बदन जब भी
और सिरहाने पर रखा तकिया सख्त लगता है
इकदम से तुम्हारे नर्म गोद कि याद में
अक्सर जुबां से "माँ" निकल ही जाता है...
(written on Nov 7 , 2008)
5 comments:
awesome~
CMT..this one is simply amazing..i swear i could smell and see..each word u described..do write more..
mere khayal me ab tak ki sabse achi kavita... !
speechless!! :)
सूक्ष्म एवं संवेदनशील !
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